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नज़्म
इक़बाल से हम-कलामी
कल अज़ान-ए-सुब्ह से पहले फ़ज़ा-ए-क़ुद्स में
मैं ने देखा कुछ शनासा सूरतें हैं हम-नशीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
कॉफ़ी-हाउस
दिन-भर कॉफ़ी-हाउस में बैठे कुछ दुबले-पतले नक़्क़ाद
बहस यही करते रहते हैं सुस्त अदब की है रफ़्तार
हबीब जालिब
ग़ज़ल
शेर में 'इक़बाल' का शैदा है 'ग़ालिब' का असीर
'हामिद'-ए-बे-बहरा-गो मुंकिर नहीं है मीर का
सय्यद हामिद
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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं
क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं
ये सारे लोग
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब नक़्श-गर-ए-हादसात
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब अस्ल-ए-हयात-ओ-ममात
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
जहाँ में जितने हैं माशूक़ उन सब से जुदा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
'ग़ालिब' के शहर 'मीर' की बस्ती में आ गए
हम लोग गाँव छोड़ के दिल्ली में आ गए
राही हमीदी चाँदपुरी
हास्य शायरी
रात उस मिस से कलीसा में हुआ मैं दो-चार
हाए वो हुस्न वो शोख़ी वो नज़ाकत वो उभार